मुंबई, 31 जुलाई 2025:
2008 के मालेगांव बम धमाके के बहुचर्चित मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की विशेष अदालत ने शुक्रवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत सातों आरोपियों को बरी कर दिया है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि मामले में पुख्ता सबूतों की कमी के चलते दोष सिद्ध नहीं किया जा सका।
17 वर्षों तक चले इस मामले में 323 गवाहों के बयान, सैकड़ों सबूत और तीन एजेंसियों की जांच के बावजूद अंत में कोर्ट ने सभी आरोपियों को दोषमुक्त करार दिया।
मालेगांव ब्लास्ट केस: एक नज़र पूरी टाइमलाइन पर
29 सितंबर 2008 – धमाके से दहला मालेगांव
महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव में रमजान के दौरान रात करीब 9:35 बजे अंजुमन चौक और भिक्कू चौक के बीच एक मोटरसाइकिल में विस्फोट हुआ। इस धमाके में 6 लोगों की मौत हुई और 95 घायल हुए। क्षेत्र सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील था, इसलिए स्थिति और अधिक तनावपूर्ण हो गई।
30 सितंबर 2008 – पहली एफआईआर दर्ज
धमाके के महज कुछ घंटों बाद ही मालेगांव के आजाद नगर पुलिस स्टेशन में अज्ञात आरोपियों के खिलाफ FIR दर्ज की गई। इसी के साथ मामले की जांच की शुरुआत हुई।
21 अक्टूबर 2008 – ATS को सौंपी गई जांच
मामले की गंभीरता को देखते हुए महाराष्ट्र एंटी टेररिज्म स्क्वॉड (ATS) को इसकी जांच सौंपी गई। ATS की जांच में दक्षिणपंथी संगठनों की भूमिका पर संदेह गहराया और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित जैसे नाम सामने आए।
20 जनवरी 2009 – ATS की पहली चार्जशीट
मुंबई की विशेष MCOCA कोर्ट में ATS ने पहली चार्जशीट दाखिल की। इसमें 11 लोगों को आरोपी बनाया गया। चार्जशीट में दावा किया गया कि धमाके में इस्तेमाल मोटरसाइकिल साध्वी प्रज्ञा की थी और पुरोहित ने विस्फोटकों की व्यवस्था की थी।
13 अप्रैल 2011 – केस NIA को ट्रांसफर
घटना की राष्ट्रीय महत्व और राजनीतिक संवेदनशीलता को देखते हुए केस राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंपा गया। इसके साथ ही पुरानी जांच की दिशा और निष्कर्षों पर सवाल उठने लगे।
21 अप्रैल 2011 – NIA की पहली सप्लीमेंट्री चार्जशीट
NIA ने पहली बार कोर्ट में सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की, जिसमें सात आरोपियों पर UAPA और IPC की धाराओं के तहत आरोप तय किए गए। हालांकि, सबूतों की कमी जांच में लगातार बाधा बनती रही।
13 मई 2016 – मकोका हटा, आरोप हल्के किए
NIA ने एक और सप्लीमेंट्री चार्जशीट पेश की जिसमें साध्वी प्रज्ञा सहित कई आरोपियों पर लगे मकोका (MCOCA) के प्रावधान हटा दिए गए। एजेंसी ने कहा कि उनके पास कुछ आरोपों को सिद्ध करने के लिए ठोस सबूत नहीं हैं।
2025: अंतिम फैसला – सबूत नहीं, सभी आरोपी बरी
NIA कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 17 साल की लंबी सुनवाई और 323 गवाहों के बावजूद अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि आरोपी अपराध में शामिल थे। कोर्ट ने कहा कि संदेह के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
बरी होने वाले प्रमुख आरोपी:
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साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर (मौजूदा लोकसभा सांसद)
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लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित
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अजय राहिरकर
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सुधाकर चतुर्वेदी
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समीर कुलकर्णी
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राकेश धवड़े
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सुधाकर द्विवेदी
मामले से उठे प्रमुख सवाल
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क्या जांच एजेंसियों की प्रारंभिक रिपोर्ट जल्दबाज़ी में तैयार की गई थी?
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क्या राजनीतिक दबावों के कारण जांच की दिशा बदली?
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क्या 17 साल तक जेल में बंद रहने वाले निर्दोष थे?