पटना, बिहार — बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में इस बार राजनीतिक समीकरण कुछ ऐसे उलझे हैं कि कई नेता एक पार्टी के सदस्य हैं, लेकिन टिकट उन्हें दूसरी पार्टी से मिला है। सीटों के बंटवारे और गठबंधनों के फेर में नेताओं की स्थिति “नेता किसी दल के, टिकट कहीं और का” जैसी बन गई है।
गठबंधन की राजनीति और समझौतों के चलते कई दिग्गजों को अपने दल की बजाय सहयोगी दल के टिकट से चुनावी मैदान में उतरना पड़ रहा है। इससे सियासी गलियारों में हलचल और मतदाताओं में भ्रम की स्थिति बन गई है।
ऋषि मिश्रा: राजद प्रवक्ता, टिकट कांग्रेस का
राजद प्रवक्ता ऋषि मिश्रा दरभंगा की जाले सीट से पार्टी के उम्मीदवार रहे हैं, लेकिन इस बार सीट कांग्रेस के खाते में चली गई। नतीजतन, ऋषि मिश्रा को कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ना पड़ रहा है। यानी, राजद नेता अब कांग्रेस प्रत्याशी बन गए हैं।
केदार सिंह: जदयू से आए, भाजपा ने थमाया टिकट
राजद छोड़कर हाल ही में जदयू में शामिल हुए केदार सिंह को भाजपा ने टिकट दिया है। बनियापुर सीट भाजपा के कोटे में आने के कारण उन्हें भाजपा उम्मीदवार बना दिया गया। इस तरह, वे जदयू में रहते हुए भाजपा के प्रत्याशी बन गए — जो इस चुनाव की सबसे दिलचस्प घटनाओं में से एक है।
मुरारी गौतम: भाजपा से लोजपा (आर) प्रत्याशी
चेनारी के विधायक मुरारी गौतम, जो हाल ही में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे, अब लोजपा (रामविलास) से मैदान में हैं। चेनारी सीट लोजपा (आर) के हिस्से में आने के कारण उन्हें इस दल का उम्मीदवार बनाया गया, जबकि औपचारिक रूप से वे लोजपा (आर) में शामिल नहीं हुए थे।
बेबी कुमारी: भाजपा से लोजपा (आर) तक
भाजपा की पूर्व विधायक बेबी कुमारी को बोचहां सीट से लोजपा (आर) ने अपना उम्मीदवार बनाया है। यह सीट एनडीए में लोजपा (आर) के कोटे में चली गई थी।
नवीन निषाद: राजद से वीआईपी उम्मीदवार
आलमनगर विधानसभा सीट से राजद के नवीन निषाद अब वीआईपी (विकासशील इंसान पार्टी) के टिकट पर मैदान में हैं। गठबंधन के तहत यह सीट वीआईपी को मिलने के बाद, पार्टी ने उन्हीं को प्रत्याशी घोषित किया।
आशा सिन्हा: भाजपा से जनसुराज तक
पूर्व भाजपा नेता आशा सिन्हा को जनसुराज पार्टी ने दानापुर से टिकट दिया, हालांकि वे निर्धारित समय में नामांकन दाखिल नहीं कर सकीं।
राजनीतिक समीकरणों का नया चेहरा
इस बार के बिहार चुनाव में गठबंधन राजनीति का गणित इतना जटिल हो गया है कि नेता और मतदाता दोनों को स्थिति समझने में समय लग रहा है। यह चुनाव न केवल दलों की लोकप्रियता बल्कि गठबंधन के भीतर तालमेल और व्यावहारिक राजनीति की परीक्षा भी बन गया है।