मुंबई। महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। ओबीसी समुदाय के प्रभावशाली नेता और वरिष्ठ एनसीपी नेता छगन भुजबल की महाराष्ट्र मंत्रिमंडल में वापसी हो गई है। सोमवार सुबह उन्होंने राजभवन में पद और गोपनीयता की शपथ ली। उनकी वापसी को भारतीय जनता पार्टी (BJP) की रणनीतिक चाल माना जा रहा है, जो आगामी स्थानीय निकाय और विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए की गई है।
भुजबल की वापसी ऐसे समय पर हुई है जब ओबीसी समुदाय में नाराजगी देखने को मिल रही थी, खासकर धनंजय मुंडे को कैबिनेट से बाहर रखने के बाद। भुजबल जैसे वरिष्ठ और कद्दावर नेता की वापसी से बीजेपी और एनसीपी (अजित पवार गुट) को उम्मीद है कि ओबीसी समुदाय की नाराजगी कुछ हद तक कम की जा सकेगी।
सूत्रों के मुताबिक, भुजबल की कैबिनेट में एंट्री BJP की पहल पर हुई है, जिससे यह साफ हो गया है कि बीजेपी उन्हें ओबीसी चेहरे के रूप में फिर से मजबूत करने की कोशिश में है। आने वाले महीनों में जब मराठा आरक्षण को लेकर मनोज जरांगे का आंदोलन फिर तेज हो सकता है, तब भुजबल को मोर्चा संभालने के लिए आगे रखा जा सकता है।
गौरतलब है कि छगन भुजबल विधानसभा चुनाव के बाद मंत्रिमंडल से बाहर कर दिए गए थे, जिससे वे पार्टी नेतृत्व, विशेषकर अजित पवार से नाराज चल रहे थे। कई बार उन्होंने सार्वजनिक मंच से अपनी नाराजगी जाहिर की थी। हालांकि आज शपथग्रहण के बाद जब उनसे उनके और अजित पवार के रिश्तों के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने साफ कहा, "हमारे बीच कितने भी मतभेद रहे हों, लेकिन मैंने कभी भी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी या अजित दादा का साथ नहीं छोड़ा।"
छगन भुजबल की वापसी से जहां BJP और अजित पवार गुट को ओबीसी वोटबैंक में मजबूती मिलने की उम्मीद है, वहीं पार्टी के कुछ अन्य नेताओं में असंतोष भी उभर सकता है। ऐसे में देखना होगा कि यह वापसी महाराष्ट्र की राजनीति में किस तरह के समीकरण गढ़ती है।