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राज्य / बिहार

‘सॉरी पत्र’ लाना चाहिए; एनडीए के संकल्प पत्र पर तेजस्वी बोले – नीतीश जी को कुछ पता नहीं होगा

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पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र सत्तारूढ़ एनडीए के संकल्प पत्र को लेकर सियासी घमासान तेज हो गया है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने एनडीए के घोषणापत्र को “पुराने वायदों का दोहराव” बताते हुए कहा कि एनडीए को बिहार की 14 करोड़ जनता के लिए ‘सॉरी पत्र’ जारी करना चाहिए।

तेजस्वी यादव ने कहा कि एनडीए सरकार ने बीते 20 सालों में बिहार को केवल वादों के सहारे रखा है। उन्होंने कहा —

“हर क्षेत्र में यह सरकार फेल रही है। पहले की घोषणाएं पूरी नहीं हुईं और अब आनन-फानन में नया संकल्प पत्र जारी कर दिया गया। यह 30 सेकेंड में जारी होकर 30 सेकेंड में खत्म भी हो गया।”

तेजस्वी ने कटाक्ष करते हुए कहा कि एनडीए का घोषणा पत्र खुद उनसे सवाल पूछ रहा होगा कि जो वादे पहले किए गए थे, उनका क्या हुआ। उन्होंने कहा कि मिड डे मील जैसी योजनाओं का फिर से जिक्र करना बताता है कि पहले की व्यवस्था ठीक से नहीं चल रही।

“नीतीश कुमार को पता ही नहीं होगा इसमें क्या है”

तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भी निशाना साधते हुए कहा —

“सीएम नीतीश कुमार को शायद पता भी नहीं होगा कि इस संकल्प पत्र में क्या लिखा है। प्रेस कॉन्फ्रेंस छोटी कर दी गई और सीएम को बोलने भी नहीं दिया गया। यह सरकार हर सेक्टर में नाकाम है।”

तेजस्वी ने कहा कि एनडीए सरकार अब भी पुराने वादे दोहरा रही है —

“वे कहते हैं कि हर जिले में मेडिकल कॉलेज खोलेंगे, जबकि जो कॉलेज पहले से चल रहे हैं, वहां डॉक्टरों और नर्सों की भारी कमी है। पहले पुराने काम पूरे करें, फिर नए वादे करें।”

एनडीए और विपक्ष में तीखी बयानबाज़ी

एनडीए नेताओं ने अपने घोषणापत्र को बिहार के विकास का “शिलान्यास पत्र” बताया है, जबकि विपक्ष इसे जनता से “छलावा” कह रहा है।
राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने भी टिप्पणी करते हुए कहा कि यह संकल्प पत्र “तेजस्वी यादव के वायदों की आधी-अधूरी कॉपी” है।

विवाद तब और बढ़ गया जब यह सामने आया कि एनडीए का घोषणापत्र मात्र 26 सेकेंड में जारी किया गया और उसके बाद मीडिया से किसी वरिष्ठ नेता ने विस्तार से बात नहीं की। केवल सम्राट चौधरी और उपेंद्र कुशवाहा ने ही प्रेस से संक्षिप्त बातचीत की।

राजनीतिक पारा चढ़ा

तेजस्वी यादव के इस बयान के बाद बिहार की सियासत में गर्मी बढ़ गई है। जहां एनडीए अपने वादों को विकास का रोडमैप बता रहा है, वहीं विपक्ष इसे बिहार की जनता से दो दशक का “विफल वादा” करार दे रहा है।


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