देहरादून/हल्द्वानी – उत्तराखंड में कथित तौर पर बिना मान्यता के चल रहे मदरसों पर प्रशासन की सख्त कार्रवाई के चलते अब तक 170 से अधिक मदरसे सील किए जा चुके हैं। राज्य सरकार का कहना है कि यह कदम केवल अवैध और अनरजिस्टर्ड मदरसों के खिलाफ उठाया गया है, जबकि मुस्लिम संगठनों ने इस कार्रवाई को एकतरफा और समुदाय विशेष को निशाना बनाने वाला करार दिया है।
मदरसा बंद, बच्चों की पढ़ाई ठप
देहरादून के कारगी इलाके में स्थित दारुल उलूम मुहमदिया मदरसा, जो वर्ष 2013 से चल रहा था, 28 फरवरी 2025 को सील कर दिया गया। मदरसे के प्रबंधक मोहम्मद मोहतशिम का कहना है,
“हमारे पास शिक्षा बोर्ड और मदरसा बोर्ड की मान्यता है, जमीन के कागजात भी मौजूद हैं। फिर भी बिना नोटिस दिए कार्रवाई की गई। जब हमने बात करनी चाही तो सिर्फ इतना कहा गया कि ऊपर से आदेश है। मदरसा तो सील होकर रहेगा।”
मोहतशिम बताते हैं कि कार्रवाई के दिन DM, SDM और भारी पुलिस बल के साथ अधिकारी अचानक पहुंचे। उस समय मदरसे में 70-80 बच्चे पढ़ाई कर रहे थे, जो डर कर भाग गए। तब से मदरसा पूरी तरह बंद है।
सरकार का पक्ष: "मान्यता नहीं, इसलिए सील"
दिसंबर 2024 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य भर के सभी मदरसों का वेरिफिकेशन कराने का आदेश दिया था। इस वेरिफिकेशन में मदरसों के रजिस्ट्रेशन, फंडिंग स्रोत और छात्र संख्या की जांच की गई।
सरकार का कहना है कि जिन मदरसों को बंद किया गया, वे या तो मदरसा बोर्ड में पंजीकृत नहीं थे या फिर नवीनतम अनुमति दस्तावेजों की कमी थी।
राज्य मदरसा बोर्ड की मान्यता समिति की 5 वर्षों बाद 27 फरवरी को बैठक हुई थी, जिसमें कई नए और पुराने आवेदन पर विचार किया गया। लेकिन प्रबंधन का आरोप है कि सर्टिफिकेट जारी होने से पहले ही कार्रवाई शुरू कर दी गई।
मुस्लिम संगठनों का आरोप: "एकतरफा कार्रवाई"
मुस्लिम संगठनों और स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह कार्रवाई चुनिंदा तौर पर मुस्लिम समुदाय को टारगेट करने के उद्देश्य से की गई है। हल्द्वानी, हरिद्वार, उधम सिंह नगर और नैनीताल जैसे जिलों में बड़ी संख्या में मदरसे सील किए गए हैं।
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उधम सिंह नगर में 65
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देहरादून में 44
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हरिद्वार में 43
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नैनीताल में 25
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हल्द्वानी में 17 मदरसे सील किए गए हैं
आम लोगों की चिंता: "बच्चों की पढ़ाई का क्या?"
मदरसे में चौथी कक्षा में पढ़ रहे छात्र हसन के पिता अकील, जो मजदूरी करते हैं, कहते हैं:
“मैं प्राइवेट स्कूल का खर्च नहीं उठा सकता। मदरसे में मुफ्त में पढ़ाई होती थी। अब मदरसा बंद हो गया है, तो बच्चे को कहां पढ़ाएं? प्रशासन को पहले कोई विकल्प देना चाहिए था।”
संवादहीनता और सिस्टम की उलझन
मदरसों के संचालकों का कहना है कि उन्होंने सम्बंधित दस्तावेज और आवेदन समय पर दिए थे, लेकिन उन्हें न तो कोई नोटिस मिला और न ही अपनी बात रखने का मौका।
मोहतशिम बताते हैं,
“मैं DM से मिला, तो उन्होंने मदरसा बोर्ड भेजा। वहां गए तो अध्यक्ष ने मिलने से इनकार कर दिया। SDM के पास भेजा गया, लेकिन समाधान कहीं नहीं मिला।”
उत्तराखंड में मदरसों पर हो रही कार्रवाई से प्रशासन और मुस्लिम समुदाय के बीच टकराव की स्थिति बन गई है। सरकार का जोर "सिस्टम दुरुस्त करने" पर है, जबकि समुदाय का सवाल है – क्या दुरुस्ती के नाम पर पक्षपात हो रहा है?