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राज्य

जब मात्र 7 दिनों में ही कुर्सी छोड़ दी थी नीतीश कुमार ने, जोड़-तोड़ से साफ मना कर दिया था

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पटना। बिहार की राजनीति में वर्ष 2000 का विधानसभा चुनाव एक ऐतिहासिक मोड़ लेकर आया। इसी चुनाव के बाद नीतीश कुमार पहली बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन केवल सात दिनों में ही उन्होंने पद छोड़ दिया। बहुमत जुटाने के लिए विधायकों की खरीद-फरोख्त और जोड़-तोड़ से इंकार करने के कारण उनकी सरकार गिर गई। इसके बाद लालू यादव ने सक्रिय होकर राबड़ी देवी के नेतृत्व में सरकार बनाई, जिसने अगले पाँच वर्षों तक बिहार की सत्ता संभाली।

चुनाव के बाद त्रिशंकु विधानसभा

1999 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को अच्छा समर्थन मिला था और बिहार में उसकी बढ़त देखी जा रही थी। लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद तस्वीर बदल गई। कुल 324 में से 124 सीटें जीतकर राजद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। एनडीए को 151 सीटें मिलीं जबकि कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब रहा। बहुमत के लिए आवश्यक 163 सीटों से दोनों गठबंधन दूर थे, लेकिन सरकार बनाने की कोशिशें तेज हो गईं।

नीतीश का सत्ता से दूरी बनाना

समता पार्टी के नेता के रूप में नीतीश कुमार ने 3 मार्च 2000 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लेकिन बहुमत जुटाने की कवायद के दौरान कई विधायकों को समर्थन देने की पेशकश की गई। राजद के प्रभावशाली नेताओं ने विरोधी दलों के कई विधायकों को अपने पक्ष में कर लिया, जिससे एनडीए बहुमत से पीछे रह गया। नीतीश ने कहा कि वे तोड़-फोड़ और खरीद-फरोख्त के आधार पर सरकार नहीं चलाएंगे। यही वजह रही कि उन्होंने केवल सात दिनों बाद यानी 10 मार्च 2000 को इस्तीफा दे दिया।

राबड़ी देवी का शासन

नीतीश सरकार गिरने के बाद लालू यादव ने तेजी से कदम बढ़ाया और राबड़ी देवी के नेतृत्व में सरकार बनाई। समर्थन जुटाकर बहुमत साबित किया गया और राबड़ी ने लगभग चार साल 360 दिन तक शासन चलाया। भाजपा के सुशील कुमार मोदी विपक्ष के नेता बने, जबकि बाद में जदयू के उपेंद्र कुशवाहा ने यह भूमिका निभाई।

जनता दल यूनाइटेड का गठन

इस दौरान समता पार्टी और शरद यादव के नेतृत्व वाले जनता दल यूनाइटेड का विलय हुआ। नए स्वरूप में जदयू का राजनीतिक प्रभाव बिहार में बढ़ा। नीतीश कुमार का चेहरा लोगों के बीच लोकप्रिय होने लगा और पार्टी का विस्तार तेज हुआ।

बिहार-झारखंड बंटवारा

राजनीतिक असमंजस और क्षेत्रीय आकांक्षाओं के बीच 15 नवंबर 2000 को बिहार का विभाजन कर झारखंड एक अलग राज्य बना। झारखंड में भाजपा की सरकार बनी और बाबूलाल मरांडी पहले मुख्यमंत्री बने। वहीं बिहार में राबड़ी देवी की सरकार बनी रही। लालू यादव, जो विभाजन के खिलाफ थे, अंततः राजनीतिक मजबूरी में सहमत हुए। झारखंड मुक्ति मोर्चा के समर्थन और अपने प्रभाव को बनाए रखने के लिए उन्हें समझौता करना पड़ा।

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