छत्तीसगढ़ में हुए 2,500 करोड़ रुपए से अधिक के शराब घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने बड़ा खुलासा करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल को सिंडिकेट का मास्टरमाइंड बताया है। सोमवार को जिला एवं अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की अदालत में दायर चौथी पूरक अभियोजन शिकायत में ED ने आरोप लगाया कि चैतन्य ने शराब घोटाले से अर्जित करीब 1,000 करोड़ रुपए की आपराधिक आय को इधर-उधर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
रियल एस्टेट में लगाया गया घोटाले का पैसा
आरोप पत्र में कहा गया है कि चैतन्य ने शराब घोटाले से प्राप्त 18.90 करोड़ रुपए अपनी रियल एस्टेट परियोजना ‘विट्ठल ग्रीन’ में तथा 3.10 करोड़ रुपए ‘मेसर्स बघेल डेवलपर्स एंड एसोसिएट्स’ में लगाया। जांच में यह भी पाया गया कि वह इन संपत्तियों को अवैध धन से अर्जित होने के बावजूद बेदाग संपत्ति के रूप में पेश कर रहा था।
संगठित गिरोह का संचालन
ED ने आरोप लगाया कि चैतन्य बघेल ने न केवल धन संग्रहण की निगरानी की, बल्कि बड़े फैसले भी उसके निर्देशों पर लिए जाते थे। उसके नियंत्रण में गिरोह का संचालन होता था और उसकी भूमिका प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि प्रभावशाली और निर्णायक थी। इसके अलावा, उसके पिता और तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का नाम भी सामने आया। आरोप है कि कैश कहां से मिलेगा और किसे देना है, इसकी जानकारी चैतन्य के माध्यम से भूपेश बघेल देते थे।
कैश का प्रवाह और अन्य आरोपियों की भूमिका
आरोप पत्र में बताया गया कि नकदी लक्ष्मी नारायण बंसल उर्फ पप्पू द्वारा इकट्ठा की जाती थी और दीपेन चावड़ा के जरिए अनवर ढेबर तक पहुंचाई जाती थी। वहीं, फिर चैतन्य के निर्देशानुसार यह राशि कांग्रेस के तत्कालीन कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल तक पहुंचाई जाती थी। रामगोपाल अग्रवाल फिलहाल फरार हैं। ED ने बयान में कहा कि नकदी को ‘सामान’ कहकर कोड वर्ड में भेजा जाता था।
डिजिटल सबूत और गिरफ्तारी
जांच के दौरान आरोपियों के मोबाइल फोन से वॉट्सएप चैट सहित कई महत्वपूर्ण डिजिटल सबूत बरामद किए गए। चैतन्य बघेल को 18 जुलाई को दुर्ग जिले के भिलाई स्थित उनके घर से गिरफ्तार किया गया था। ED ने अब तक एक अभियोजन शिकायत और चार पूरक शिकायतें दर्ज की हैं।
शराब घोटाले की पृष्ठभूमि
ED का दावा है कि यह घोटाला 2019 से 2022 के बीच कांग्रेस सरकार के शासन में हुआ। इसमें पूर्व मंत्री कवासी लखमा, कारोबारी अनवर ढेबर, IAS अधिकारी अनिल टुटेजा समेत कई प्रभावशाली लोगों के शामिल होने का आरोप है। जांच में यह भी सामने आया कि यह गिरोह संगठित रूप से काम कर रहा था, जिसमें राज्य खजाने को भारी नुकसान पहुंचाया गया।