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राज्य / बिहार

बिहार चुनाव: पवन सिंह की बीजेपी में वापसी से बदले समीकरण, डेहरी-ऑन-सोन बना सियासी अखाड़ा

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पटना, 30 सितंबर 2025।
भोजपुरी स्टार और सिंगर-एक्टर पवन सिंह की बीजेपी में दोबारा एंट्री ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नए राजनीतिक समीकरण खड़े कर दिए हैं। सवाल यह है कि क्या उनकी लोकप्रियता डेहरी-ऑन-सोन में एनडीए का किला बचा पाएगी या फिर 2020 की तरह नतीजे दोहराए जाएंगे?

अमित शाह का दौरा और पवन सिंह की वापसी

बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हालिया डेहरी-ऑन-सोन दौरे ने पवन सिंह की री-एंट्री का रास्ता साफ किया। मंगलवार को जब पवन सिंह बिहार प्रभारी विनोद तावड़े और एनडीए सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा के साथ नजर आए, तो साफ हो गया कि पार्टी उन्हें चुनावी मोर्चे पर बड़ी जिम्मेदारी देने वाली है।

आरके सिंह की बगावत और पीके की चुनौती

जानकारों का कहना है कि बीजेपी का यह कदम दो मोर्चों पर लड़ाई को साधने की कोशिश है।

  1. आरा के पूर्व सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह के बागी तेवर ने पार्टी नेतृत्व को परेशानी में डाल रखा है। राजपूत वोट बैंक में पवन सिंह को लाकर पार्टी ने आरके सिंह की चुनौती को संतुलित करने की कोशिश की है।

  2. प्रशांत किशोर (पीके) लगातार भ्रष्टाचार और सुशासन पर हमले बोलकर नीतीश सरकार और एनडीए पर दबाव बना रहे हैं। ऐसे में पवन सिंह जैसे सेलिब्रिटी को सामने लाकर बीजेपी चुनावी नैरेटिव को “मनोरंजन, लोकप्रियता और जातीय समीकरण” की तरफ मोड़ना चाहती है।

राजपूत–कुशवाहा समीकरण

डेहरी-ऑन-सोन क्षेत्र में तकरीबन 24 विधानसभा सीटों पर राजपूत और कुशवाहा जाति का वोट बैंक निर्णायक माना जाता है। पिछली बार काराकाट लोकसभा चुनाव में दोनों जातियों के बीच टकराव से एनडीए को नुकसान उठाना पड़ा था। अब पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा की मुलाकात इस बात का संकेत है कि गिले-शिकवे भुलाकर दोनों समुदायों को साथ लाने की कोशिश हो रही है।

क्या लड़ेंगे पवन सिंह चुनाव?

फिलहाल यह साफ नहीं है कि पवन सिंह सीधे चुनावी मैदान में उतरेंगे या फिर स्टार प्रचारक के तौर पर अहम भूमिका निभाएंगे। लेकिन इतना तय है कि युवा वोटरों और महिलाओं के बीच उनकी लोकप्रियता बीजेपी के लिए बड़ा “सेलिब्रिटी कार्ड” साबित हो सकती है।

चुनावी तस्वीर

बिहार की राजनीति में पवन सिंह की री-एंट्री सिर्फ एक चेहरे की वापसी नहीं, बल्कि राजपूत वोट बैंक को साधने, बगावत को काबू करने और पीके की चुनौती से निपटने की रणनीति है। अब देखना यह होगा कि डेहरी-ऑन-सोन में इस बार नतीजा 2020 जैसा होगा या फिर 2025 में नया इतिहास लिखा जाएगा।

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