उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी मजबूत पकड़ और बेबाक बयानों के लिए मशहूर समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता आजम खान मंगलवार को लगभग 23 महीने बाद जेल से रिहा होने जा रहे हैं। अक्टूबर 2023 में सीतापुर जेल जाने के बाद जहां उनके विरोधियों ने राजनीतिक और आर्थिक तौर पर खुद को मजबूत किया, वहीं आजम खान का कद घटाने में कोई भी सफल नहीं हो पाया। यही वजह है कि जेल की सलाखों के पीछे रहने के बावजूद आजम समय-समय पर सूबे की सियासत में सुर्खियों में बने रहे।
पश्चिमी यूपी में बढ़ेगा सियासी तापमान
आजम खान की रिहाई से खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में उबाल आना तय माना जा रहा है। रामपुर सहित आसपास के जिलों में उनकी सियासी पकड़ इतनी मजबूत है कि यहां प्रत्याशी चयन में अंतिम फैसला अक्सर लखनऊ से नहीं, बल्कि उनके रामपुर कार्यालय से होता रहा है।
विरोधियों की सक्रियता के बावजूद बरकरार रसूख
अक्टूबर 2023 में जेल जाने के बाद उनके विरोधियों ने सियासी जमीन मजबूत करने की कोशिशें तेज कर दीं। बावजूद इसके आजम का प्रभाव कमजोर नहीं हुआ। जेल में रहते हुए भी उन्होंने कई मौकों पर अपने फैसलों से सपा और प्रदेश की राजनीति को प्रभावित किया। 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने मुरादाबाद से एसटी हसन का टिकट कटवाकर अपनी करीबी वीरा को टिकट दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। रामपुर में भी तब तक प्रत्याशी का ऐलान नहीं हुआ, जब तक आजम का रुख साफ नहीं हुआ।
सपा छोड़ने की अटकलें
आजम खान की रिहाई से पहले ही सियासी गलियारों में चर्चा है कि वे सपा छोड़ सकते हैं। कयास लगाए जा रहे हैं कि वे बसपा का दामन थाम सकते हैं या चंद्रशेखर आजाद की आज़ाद समाज पार्टी के साथ हाथ मिला सकते हैं। चंद्रशेखर ने जेल में आजम से मुलाकात भी की थी। हालांकि, आजम के लंबे राजनीतिक करियर को देखते हुए यह मुश्किल माना जा रहा है, क्योंकि वे खुद कई बार सार्वजनिक मंचों से कह चुके हैं कि वे सपा के संस्थापक सदस्य हैं और पार्टी छोड़ना उनके लिए नामुमकिन है।
पुराने विवादों से लेकर बड़े फैसलों तक
आजम खान के राजनीतिक सफर में कई अहम मोड़ रहे हैं। 2004 में उन्होंने जयाप्रदा को रामपुर की राजनीति में लाकर सुर्खियां बटोरीं, लेकिन 2009 में उन्हीं के खिलाफ बागी तेवर अपना लिए। ऐसे कई उदाहरण हैं, जब आजम ने अपनी ताकत का खुलकर एहसास कराया।
निगाहें अगले कदम पर
अब जब आजम खान मंगलवार को जेल से बाहर आएंगे, तो उनका अगला कदम न केवल सपा बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश की राजनीति के लिए अहम होगा। सियासी पंडितों का मानना है कि उनकी रिहाई पश्चिमी यूपी के समीकरणों को नई दिशा दे सकती है और आने वाले उपचुनावों से लेकर अगले विधानसभा चुनाव तक का राजनीतिक परिदृश्य प्रभावित कर सकती है।