बिहार के मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने अपने बड़े बेटे तेजप्रताप यादव को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया है।
यह घटना भारतीय राजनीति में परिवारवाद और राजनीतिक विरासत के बीच जटिल रिश्तों का एक नया उदाहरण है। लालू ने यह फैसला तेजप्रताप के उस सोशल मीडिया पोस्ट के बाद लिया, जिसमें उन्होंने 12 साल से अपनी साथी अनुष्का यादव के साथ रिश्ते की बात साझा की थी। तेजप्रताप ने बाद में यह पोस्ट डिलीट कर अपनी सोशल मीडिया अकाउंट हैक होने का दावा किया, लेकिन पार्टी ने उनकी सफाई को मान्यता नहीं दी। लालू यादव ने आनन-फानन में तेजप्रताप पर सख्त एक्शन लेते हुए उन्हें पार्टी ही नहीं, बल्कि घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया. हालांकि लालू यादव ने सोशल मीडिया पर साफ किया कि तेजप्रताप का व्यवहार गैर-जिम्मेदाराना और पारिवारिक तथा सामाजिक मूल्यों के खिलाफ था। उन्होंने कहा कि निजी जीवन में नैतिक ईमानदारी की कमी पार्टी की सामाजिक न्याय की लड़ाई को कमजोर करती है।
राजनीतिक परिवारवाद का और उदाहरण: मुलायम सिंह ने भी अपने बेटे को पार्टी से निकाला था
लालू यादव द्वारा तेजप्रताप को पार्टी से बाहर निकालने के बाद, राजनीतिक इतिहास में ऐसे कई उदाहरण चर्चा में आ गए हैं, जहां पिता ने अपने ही पुत्र को अपनी ही पार्टी से निकाल दिया। इनमें उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी (सपा) के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का मामला खासतौर पर उल्लेखनीय है।
30 दिसंबर 2016 को मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे और उस समय के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित करने की घोषणा की थी। मुलायम ने लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि पार्टी बचाने के लिए यह कदम उठाया गया है। उन्होंने स्पष्ट किया था कि मुख्यमंत्री कौन होगा, यह पार्टी तय करेगी और अखिलेश अब उनकी सलाह नहीं लेते।
हालांकि, अखिलेश यादव ने तत्पश्चात पार्टी के विधायकों की बैठक बुलाई, जहां उन्हें भारी समर्थन मिला। इसके बाद सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने मुलायम को अध्यक्ष पद से हटाकर अखिलेश को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दिया। यह मामला कोर्ट तक भी गया, लेकिन पार्टी कमान अंततः अखिलेश के हाथ में रही।