पटना, 1989:
बिहार की राजनीति में 1989 का विधानसभा चुनाव ऐतिहासिक साबित हुआ। जनता दल के नेतृत्व में लालू प्रसाद यादव ने गैर-कांग्रेसी दलों – भारतीय जनता पार्टी और वामपंथी पार्टियों – के सहयोग से सरकार बनाई और पूरे पाँच साल बिना किसी बड़े विरोध के शासन चलाया। इससे पहले, कांग्रेस पार्टी का दबदबा रहा था, लेकिन इस चुनाव में उसे करारा झटका लगा और वह अर्श से फर्श पर आ गई।
कांग्रेस की करारी हार
महज एक चुनाव पहले प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई कांग्रेस इस बार 196 सीटों से गिरकर सिर्फ 71 सीटों पर सिमट गई। यानी 125 सीटें घट गईं। वोट प्रतिशत भी घटकर मात्र 24.78% रह गया। यह कांग्रेस के लिए स्वतंत्र भारत में दूसरी सबसे बड़ी हार थी। पहले 1977 में आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को केवल 57 सीटें मिली थीं। इस बार वीपी सिंह की लहर ने कांग्रेस की जमीन खिसका दी।
जनता दल का उभार
जनता दल ने 122 सीटें जीतकर खुद को बिहार में एक ताकतवर विकल्प साबित किया। कांग्रेस से महज एक फीसदी अधिक वोट मिलने के बावजूद उसे 51 सीटों का फायदा मिला। यह वीपी सिंह लहर का प्रभाव था, जिसने राजीव गांधी की लोकप्रियता को पीछे छोड़ दिया। जनता दल के समर्थन से लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री बने जबकि जगन्नाथ मिश्रा विपक्ष के नेता बने। मिश्रा पहले कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री रह चुके थे, जबकि लालू विपक्ष में थे।
नई राजनीतिक ताकतें उभरीं
इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने भी अपने समर्थन आधार को मजबूत किया और 39 सीटें जीतकर सीपीआई (23 सीटें) से आगे निकल गई। वहीं, झारखंड मुक्ति मोर्चा ने दक्षिण बिहार (अब झारखंड) में 19 सीटें जीतकर राजनीतिक मानचित्र पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। कुल मिलाकर यह चुनाव क्षेत्रीय दलों और गैर-कांग्रेसी गठबंधनों के लिए एक अवसर बन गया।
लालू यादव की मुख्यमंत्री पद पर जीत
हालांकि सरकार बनाने का रास्ता साफ हो गया था, लेकिन नेता को लेकर विवाद सामने आया। पार्टी का एक बड़ा धड़ा रामसुंदर दास को मुख्यमंत्री बनाना चाहता था, जबकि लालू प्रसाद यादव ने अपने लिए ताल ठोंक दी। अंततः विधायकों के बीच चुनाव कराया गया, जिसमें लालू यादव ने कांटे की टक्कर में रामसुंदर दास को हराकर जीत हासिल की। माना जाता है कि उप प्रधानमंत्री देवीलाल का समर्थन उन्हें मिला जबकि रामसुंदर दास को वीपी सिंह का करीबी माना जाता था। इस चुनाव में रघुनाथ झा द्वारा काटे गए वोट ने लालू की जीत सुनिश्चित कर दी।
इतिहास की नई शुरुआत
यह चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन नहीं था, बल्कि बिहार की राजनीति में नए समीकरणों का जन्म था। कांग्रेस की हार और जनता दल का उभार आने वाले वर्षों की राजनीति की दिशा तय करने वाला क्षण साबित हुआ। लालू यादव का नेतृत्व, क्षेत्रीय दलों का बढ़ता प्रभाव और मतदाताओं का बदलता रुझान, बिहार की राजनीति में नए अध्याय की शुरुआत लेकर आया।