देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस बी.आर. गवई के लिए रविवार का दिन बेहद खास रहा। अपने 22 साल के न्यायिक करियर के अंतिम महीने में उन्होंने अपने गृह राज्य महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के मंदनगढ़ तालुका में नए सिविल और आपराधिक न्यायालय भवन का उद्घाटन किया — एक ऐसा पल जिसे उन्होंने “अपने सपने का साकार होना” बताया।
उद्घाटन समारोह में जस्टिस गवई ने कहा कि न्याय तक समाज के हर वर्ग की पहुँच सुनिश्चित करने के लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच तालमेल बेहद जरूरी है। उन्होंने महाराष्ट्र सरकार का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार के सहयोग से राज्य में नासिक, नागपुर, कोल्हापुर और दरियापुर सहित कई न्यायालय भवनों का निर्माण हाल ही में पूरा हुआ है।
जस्टिस गवई ने अपने संबोधन में कहा,
“एक जज के रूप में पिछले 22 वर्षों में मैंने न्याय के विकेंद्रीकरण के लिए निरंतर आवाज उठाई है और कई न्यायिक बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को पूरा करवाने में योगदान दिया है।”
उन्होंने मंदनगढ़ न्यायालय के उद्घाटन को ऐतिहासिक और भावनात्मक क्षण बताया। यह स्थान डॉ. भीमराव अंबेडकर के पैतृक गाँव अंबाडवे के समीप है। उन्होंने कहा कि यहाँ न्यायालय की स्थापना बाबा साहेब अंबेडकर के मिशन — हाशिए पर पड़े लोगों को सशक्त बनाने और कानून के शासन को सुदृढ़ करने — की सच्ची श्रद्धांजलि है।
जस्टिस गवई के लिए यह अवसर इसलिए भी खास था क्योंकि वे 23 नवंबर 2025 को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। उन्होंने कहा,
“मुझे बॉम्बे हाईकोर्ट की कोल्हापुर सर्किट बेंच और मंदनगढ़ न्यायालय भवन — जो मात्र दो वर्षों में बनकर तैयार हुआ — पर अत्यधिक गर्व और संतोष है।”
इस मौके पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रशेखर, जिले के संरक्षक मंत्री उदय सामंत और अन्य गणमान्य अतिथि मौजूद थे।
कार्यक्रम में जस्टिस गवई ने कहा कि न्याय सुलभ, त्वरित और डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर द्वारा निर्धारित सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मंदनगढ़ का यह नया न्यायालय जमीनी स्तर पर न्याय की पहुँच को सशक्त बनाने में एक अहम भूमिका निभाएगा।
इस अवसर पर उन्होंने राज्य सरकार की उस प्रतिबद्धता की भी सराहना की, जिसके तहत न्यायिक बुनियादी ढाँचे को आधुनिक और मजबूत बनाने के प्रयास लगातार जारी हैं।