अमेरिकी संसद के ऊपरी सदन सीनेट में पेश एक नए प्रस्तावित बिल ने भारतीय आईटी कंपनियों के बीच हलचल मचा दी है। इस बिल को US Halting International Relocation of Employment (HIRE) Bill नाम दिया गया है। इसमें कहा गया है कि यदि कोई अमेरिकी कंपनी किसी विदेशी कंपनी को ऐसी सेवाओं के लिए भुगतान करती है, जिनका उपयोग अमेरिका में होता है, तो उसे 25% कर चुकाना होगा। इससे भारतीय आईटी कंपनियों के लिए अनिश्चितता बढ़ गई है, जो पहले से ही सुस्त मांग और बढ़ती लागत के दबाव में हैं।
बिल में क्या है खास?
इस बिल के तहत विदेशी कंपनियों को अमेरिकी सेवाओं से जुड़े लेनदेन पर भारी कर देना होगा। EY India के अरिंदम सेन के अनुसार, इसका असर अमेरिका की 70% कंपनियों पर पड़ेगा। वहीं, एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह बिल मौजूदा स्वरूप में पारित होना कठिन है, लेकिन इसके चलते भारत की 280 अरब डॉलर की आउटसोर्सिंग इंडस्ट्री में अस्थिरता बढ़ेगी।
इंडियन आईटी कंपनियों की चिंता बढ़ी
EIIR Trend के फाउंडर पारीख जैन का कहना है कि इस बिल के चलते अमेरिकी कंपनियां भारत के साथ नई डील और निवेश में सुस्ती दिखा सकती हैं। पहले से ही अमेरिका में ऑर्डरों की कमी देखी जा रही है और कंपनियां यूरोप की तरफ ज्यादा झुक रही हैं।
अमेरिका पर निर्भरता की वजह से खतरा
भारत की बड़ी आईटी कंपनियां – TCS, Infosys, HCLTech, Wipro और Tech Mahindra – अपने राजस्व का 50-65% हिस्सा अमेरिका से ही अर्जित करती हैं। बढ़ती लागत, वीजा प्रतिबंध, टैरिफ और जियोपॉलिटिकल तनाव ने पहले से ही इनके लिए दबाव बढ़ा रखा है। AI के उपयोग में वृद्धि के चलते हायरिंग भी प्रभावित हुई है। इनमें Citigroup, JPMorgan Chase, Bank of America, Pfizer, Microsoft जैसी कंपनियां प्रमुख क्लाइंट हैं।
अमेरिका-भारत आईटी संबंधों पर मंडरा रहा खतरा
HFS Research के सीईओ फिल फ्रेश्ट ने कहा कि फिलहाल यह बिल सिर्फ एक प्रस्ताव है और जल्द कानून बनने की संभावना कम है। फिर भी यह भारतीय आईटी कंपनियों के लिए अनिश्चितता का बड़ा कारण बन गया है। बढ़ती लागत और खर्च में सुस्ती की वजह से पहले से ही अमेरिका-भारत आईटी संबंधों पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं।
यह बिल ऐसे समय पर आया है जब अमेरिकी प्रशासन पहले से भारत पर आर्थिक दबाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि राजनीतिक रणनीति के चलते यह प्रस्ताव आया है, लेकिन इसका असर तत्काल तो नहीं होगा, फिर भी इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव कंपनियों और निवेशकों पर दिखाई दे रहा है।
यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि अमेरिका की व्यापार नीति किस दिशा में जाती है और भारत की आईटी इंडस्ट्री इस चुनौती का कैसे सामना करती है।