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मध्य प्रदेश

बिना वेरिफिकेशन हुए करोड़ों का भुगतान, जीएसटी घोटाले में साइंस हाउस की बड़ी गड़बड़ियाँ

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स्वास्थ्य जांचों पर जीएसटी शून्य होने के बावजूद वसूला गया 18% टैक्स, 5 साल में 180 करोड़ की अतिरिक्त कमाई

आयकर छापों के बाद सामने आया कि साइंस हाउस कंपनी ने स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर बड़े स्तर पर वित्तीय गड़बड़ी की। भास्कर की पड़ताल में खुलासा हुआ कि कंपनी ने हर माह मरीजों की जांचों के बिल में 18% जीएसटी जोड़कर वसूला, जबकि भारत सरकार ने इन जांचों को जीएसटी मुक्त कर रखा है।

5 साल में 180 करोड़ की अवैध वसूली

कंपनी हर महीने 9% केंद्रीय जीएसटी और 9% राज्य जीएसटी जोड़कर बिल पास कराती रही। इसके चलते हर साल 36 करोड़ रुपए से अधिक वसूली की गई, जो 5 वर्षों में 180 करोड़ रुपए तक पहुंच गई। कुल मिलाकर कंपनी ने 500 से 700 करोड़ रुपए की बिलिंग की, जिसमें से लगभग 300 करोड़ रुपए ओवरबिलिंग के रूप में सामने आए।

रोजाना हजारों मरीजों से वसूली

साइंस हाउस रोजाना 8 से 10 हजार मरीजों की करीब 40 हजार जांचें कर रही थी। जांच में दिखाया गया कि लैबों पर केवल 100 करोड़ रुपए खर्च किए गए, जबकि वेतन और अन्य खर्च अलग थे।

नियमों की अनदेखी

केंद्र के 28 जून 2017 के आदेश के अनुसार मेडिकल जांचों पर जीएसटी नहीं लगाया जा सकता। इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग के अफसरों ने बिना वेरिफिकेशन किए कंपनी को हर साल 200 करोड़ से अधिक का भुगतान कर दिया।

किस तरह किया गया घालमेल?

  • कंपनी ने गलत एचएसएन (Harmonized System of Nomenclature) कोड डालकर सेवाओं को टैक्सेबल दिखाया।

  • बोगस इनवॉइस तैयार कर उन्हें सरकारी विभागों में जमा कराया।

  • फर्जी सप्लाई ऑर्डर और वर्क कंप्लीशन सर्टिफिकेट भी संलग्न कर बिल वैध प्रतीत कराए।

  • बिलों की जांच की प्रक्रिया केवल औपचारिक रह गई।

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के फाइनेंस हेड की “एक क्लिक” से भुगतान पास कर दिया गया।

लोकल रिएजेंट से गुणवत्ता समझौता

टेंडर की शर्त थी कि सभी लैबों में केवल USFDA मान्यता प्राप्त कंपनियों के रिएजेंट का इस्तेमाल होगा, लेकिन जांच में पाया गया कि ज्यादातर लैबों में स्थानीय स्तर पर बने रिएजेंट उपयोग किए जा रहे हैं।
मशीनें मानक पर सही होने के बावजूद टेस्ट में इस्तेमाल रिएजेंट गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतरे।

प्रणालीगत लापरवाही ने बढ़ाई समस्या

  • एचएसएन/एसएसी वेरिफिकेशन नहीं हुआ।

  • इनवॉइस में गलत टैक्स गणना को सिस्टम ने ब्लॉक नहीं किया।

  • डीडीओ स्तर पर निगरानी कमजोर रही।

  • अकाउंट ऑफिसर ने टैक्स रेट पर ध्यान नहीं दिया।

  • ट्रेजरी और पे एंड अकाउंट अधिकारी केवल बजट की जांच कर रहे थे, टेक्निकल वैधता की समीक्षा नहीं की।

इस पूरे मामले ने स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। बिना जांच-पड़ताल करोड़ों का भुगतान करने की वजह से कंपनी को न केवल जीएसटी के नाम पर फायदा हुआ, बल्कि ओवरबिलिंग से भी मोटी कमाई की गई। अब आयकर विभाग की कार्रवाई से इस घोटाले की परतें खुल रही हैं।

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