20 जून 2025 |
ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव के बीच चर्चा तेज है कि अगर ईरान की मौजूदा सत्ता, यानी सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई का शासन समाप्त होता है, तो क्या देश आंतरिक रूप से टूट सकता है? यह सवाल केवल एक राजनीतिक अनुमान नहीं, बल्कि सामाजिक और जातीय संरचना पर आधारित गहरी चिंता है।
ईरान-इजरायल संघर्ष के बीच उठा बिखराव का सवाल
इजरायल लगातार ईरान के प्रमुख सैन्य अधिकारियों को निशाना बना रहा है और अब खामेनेई शासन को भी चुनौती देने की बात सामने आ रही है। इसी बीच ईरान के निर्वासित नेता ईमान फोरोउतान ने आशंका जताई है कि खामेनेई शासन के पतन के बाद ईरान विभाजित हो सकता है — विशेष रूप से कुर्द, बलूच, और अरब बाहरी समर्थन या मौके का लाभ उठाकर स्वायत्तता या अलगाव की मांग कर सकते हैं।
ईरान की जातीय-सांस्कृतिक संरचना: एक बिखराव की जमीन?
ईरान को केवल शिया-सुन्नी धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि जातीय विविधता के दृष्टिकोण से भी समझना जरूरी है:
61% पर्शियन (फारसी)
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ईरान की बहुसंख्यक आबादी पर्शियन मूल की है।
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ये इंडो-आर्यन वंश के माने जाते हैं और फारसी भाषा बोलते हैं।
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देश का प्रशासनिक और राजनीतिक तंत्र इन्हीं के नियंत्रण में रहा है।
20% अजेरी (अजरबैजानी)
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ईरान का हर पांचवां नागरिक अजेरी है।
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ये तुर्किक भाषा बोलते हैं लेकिन अधिकतर शिया मुस्लिम हैं।
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ईरान के पश्चिमी हिस्सों में इनका प्रभुत्व है।
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अली खामेनेई स्वयं अजेरी मूल के हैं।
12–13% कुर्द
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कुर्द बहुसंख्यक सुन्नी मुस्लिम हैं और उत्तर-पश्चिमी ईरान में बसे हैं।
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ये तुर्की, इराक और सीरिया के कुर्दों से जुड़े हैं और अलगाववादी गतिविधियों के लिए विख्यात रहे हैं।
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इनका बड़ा हिस्सा पहले से ही कुर्दिस्तान के स्वतंत्र स्वप्न से जुड़ा रहा है।
6% बलूच
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दक्षिण-पूर्वी ईरान में बलूच समुदाय रहता है।
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ये भी अधिकतर सुन्नी हैं और पाकिस्तान-अफगानिस्तान की सीमा से जुड़े हैं।
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बलूच लंबे समय से केंद्र सरकार से असंतुष्ट रहे हैं और सशस्त्र विद्रोह के लिए जाने जाते हैं।
अरब और तुर्कमेन
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दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में बसे इन अल्पसंख्यकों में भी असंतोष देखा गया है।
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खासकर ख़ुज़ेस्तान प्रांत के शिया-अरब समुदायों में कई बार अलगाव की मांग उठती रही है।
संभावित खतरे: सत्ता शून्यता में सक्रिय हो सकते हैं अलगाववादी तत्व
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि खामेनेई शासन अचानक ढहता है और कोई स्थिर सत्ता तुरंत नहीं आती, तो देश में सत्ता शून्यता (power vacuum) बन सकता है। इसका सीधा फायदा कुर्द, बलूच और अजेरी जैसे समूह उठा सकते हैं।
कुर्दों की पहले से ही एक सशक्त सैन्य संरचना और अंतरराष्ट्रीय समर्थन रहा है। वहीं बलूच और अरब सीमावर्ती देशों से सांस्कृतिक और राजनीतिक सहयोग की उम्मीद कर सकते हैं।
पलटाव की संभावना: क्या फिर से रजा पहलवी आएंगे सत्ता में?
ईरान में कुछ सेक्युलर और प्रवासी गुट पूर्व शाह रजा पहलवी के बेटे को एक उदारवादी विकल्प मानते हैं। लेकिन उनकी लोकप्रियता ईरान के अंदर कितनी है — इस पर सवाल बना हुआ है।