गंगटोक, 21 जून 2025
करीब पांच वर्षों के लंबे इंतजार के बाद कैलाश मानसरोवर यात्रा एक बार फिर से नाथूला दर्रे के जरिए शुरू हो गई है। शुक्रवार को सिक्किम के गंगटोक से पहला जत्था रवाना हुआ, जो पूर्वी सिक्किम में स्थित भारत-चीन सीमा नाथूला पास से होकर तिब्बत (चीन) में प्रवेश करेगा।
यह रूट समुद्र तल से करीब 14,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और यात्रा का यह मार्ग उत्तराखंड के लिपुलेख पास की तुलना में न केवल अधिक सुगम है, बल्कि समय और खर्च दोनों में किफायती भी है। यह पहला जत्था करीब 54 किलोमीटर दूर स्थित नाथूला दर्रे को पार कर मानसरोवर की ओर बढ़ चुका है।
इसलिए नाथूला रूट है खास:
कम समय, कम जोखिम:
नाथूला रूट से यात्रा तुलनात्मक रूप से अधिक सुरक्षित, कम समय लेने वाली और शारीरिक रूप से कम चुनौतीपूर्ण मानी जाती है। उत्तराखंड के रूट की तुलना में यहां खतरनाक चढ़ाइयों और जोखिम वाले पहाड़ी रास्तों की कमी है।
धार्मिक महत्त्व:
कैलाश पर्वत को हिंदू धर्म में भगवान शिव का निवास स्थल माना जाता है। वहीं पास स्थित मानसरोवर झील को पवित्र जलधारा के रूप में पूजा जाता है। यह स्थान बौद्ध, जैन और बोन धर्म के अनुयायियों के लिए भी अत्यंत पवित्र माना जाता है।
प्रशासन की तैयारी:
सिक्किम सरकार ने इस यात्रा को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए स्वास्थ्य जांच, डॉक्टरों की तैनाती, चिकित्सा शिविर, ऑक्सीजन सुविधा और ठहरने की व्यवस्था को सुदृढ़ किया है। हर पड़ाव पर यात्रियों की मेडिकल जांच की जा रही है ताकि ऊंचाई पर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निपटा जा सके।
यात्रा से जुड़े तथ्य:
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यात्रा का संचालन भारत-चीन मैत्री समझौते के तहत किया जा रहा है।
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सिक्किम का रूट लिपुलेख की तुलना में ज्यादा सुगम (लगभग 12-22 दिन की यात्रा)।
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विदेश मंत्रालय और पर्यटन मंत्रालय की देखरेख में जारी है प्रक्रिया।
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श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सुविधा को प्राथमिकता में रखा गया है।
भारत की कूटनीतिक और धार्मिक उपलब्धि
पांच साल के अंतराल के बाद यात्रा का फिर से शुरू होना न केवल भारत-चीन संबंधों में स्थिरता का संकेत है, बल्कि यह भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व से जुड़े लाखों श्रद्धालुओं के लिए एक बड़ी राहत भी है।