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टैरिफ विवाद पर अमेरिका से भारत को बातचीत का संकेत? ट्रंप प्रशासन और शीर्ष अधिकारियों के बयान से मिले संकेत

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नई दिल्ली, 3 सितम्बर 2025
भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ विवाद पिछले कुछ महीनों से तनाव का कारण बना हुआ है। लेकिन हाल के दिनों में अमेरिकी प्रशासन के बयानों से यह संकेत मिल रहा है कि वाशिंगटन भारत के साथ संवाद और समझौते के लिए तैयार है। वहीं भारत ने भी नवंबर तक अमेरिका के साथ ट्रेड डील होने का भरोसा जताया है।

अमेरिका की ओर से सकारात्मक संदेश

1 सितंबर को जब पीएम मोदी, रूस के राष्ट्रपति पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग SCO समिट में चर्चा कर रहे थे, उसी समय भारत में अमेरिकी दूतावास की ओर से ट्वीट आया जिसमें कहा गया कि “भारत और अमेरिका के बीच साझेदारी 21वीं सदी का निर्णायक रिश्ता है।”

इसी दिन पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी सोशल मीडिया पोस्ट में दावा किया कि भारत अमेरिकी आयात पर टैरिफ “ना के बराबर” करने को तैयार है। हालांकि उन्होंने इसे “देर से उठाया गया कदम” बताया। इसके बावजूद उनका बयान इस बात का संकेत देता है कि अमेरिका बातचीत के लिए सकारात्मक है।

वित्त मंत्री का बयान

2 सितंबर को अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बैसेंट ने कहा, “अंततः दो महान देश इस समस्या का समाधान निकाल लेंगे।” उन्होंने भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बताते हुए यह भी कहा कि भारत के मूल्य रूस से ज्यादा अमेरिका और चीन के करीब हैं।

ट्रंप और उनके सलाहकार का रुख

ट्रंप प्रशासन के दौरान उनके सलाहकार पीटर नवारो ने भी कहा था कि भारत को अमेरिका के साथ बैठकर बातचीत करनी चाहिए। वहीं खुद ट्रंप ने भारत पर ऊंचे टैरिफ का आरोप लगाते हुए भी यह स्वीकार किया कि दोनों देशों के बीच संबंध मजबूत हैं और बातचीत से समाधान संभव है।

भारत का रुख और नवंबर तक डील की उम्मीद

भारत ने स्पष्ट किया है कि वह कृषि, डेयरी और ऊर्जा सुरक्षा जैसे हितों से समझौता नहीं करेगा। इसके बावजूद वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने उम्मीद जताई है कि नवंबर तक अमेरिका के साथ द्विपक्षीय ट्रेड डील संभव है। उन्होंने कहा कि बातचीत जारी है और चीजें जल्द ही पटरी पर आ सकती हैं।

SCO समिट से संदेश

SCO सम्मेलन में पीएम मोदी ने ग्लोबल साउथ की आकांक्षाओं पर जोर देते हुए कहा कि दुनिया को नए वर्ल्ड ऑर्डर की ओर बढ़ना होगा। वहीं चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने भी अमेरिका का नाम लिए बिना उसकी नीतियों की आलोचना की और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की वकालत की।

निष्कर्ष

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