मुंबई – महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में प्रस्तावित तीन-भाषा नीति (थ्री-लैंग्वेज पॉलिसी) को फिलहाल के लिए स्थगित कर दिया है। इस फैसले के पीछे जनता और राजनीतिक दलों की तीव्र आपत्ति को मुख्य कारण बताया जा रहा है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने रविवार को घोषणा की कि नीति को लागू करने से पहले इसकी समीक्षा के लिए एक समिति का गठन किया गया है, जिसकी अध्यक्षता शिक्षाविद् और पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ. नरेंद्र जाधव करेंगे।
राज्य सरकार ने नीति से संबंधित दोनों संशोधित सरकारी आदेश (GR) वापस ले लिए हैं। यह निर्णय मंत्रिमंडल की बैठक में लिया गया। फडणवीस ने साफ किया कि जब तक समिति की रिपोर्ट नहीं आ जाती, तब तक नीति लागू नहीं की जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि "मराठी भाषा ही हमारे लिए केंद्रबिंदु है।"
क्या थी विवादित नीति?
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत जारी किए गए आदेश में कहा गया था कि मराठी और अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाएगा। हालांकि, इसमें यह प्रावधान भी था कि यदि किसी कक्षा में कम से कम 20 छात्र किसी अन्य भारतीय भाषा को पढ़ना चाहें, तो स्कूल को उस विकल्प की सुविधा देनी होगी—चाहे शिक्षक के माध्यम से या ऑनलाइन।
बढ़ता विरोध और राजनीतिक प्रतिक्रिया
सरकार के इस निर्णय को लेकर विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने सरकार पर हिंदी "थोपने" और क्षेत्रीय भाषाओं, विशेषकर मराठी, की उपेक्षा करने का आरोप लगाया। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे ने इस नीति के खिलाफ मोर्चा खोला और मराठी समाज से सड़कों पर उतरने की अपील की थी।
राज ठाकरे ने सरकार के कदम वापस लेने पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "यह कोई देर से आई समझदारी नहीं, बल्कि मराठी जनभावना की जीत है। हिंदी थोपने की कोशिश मराठी अस्मिता के सामने टिक नहीं पाई।" उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि सरकार हिंदी को लेकर इतनी हठधर्मी क्यों थी और उसके पीछे किसका दबाव था—यह अब भी स्पष्ट नहीं है।
आगे क्या?
सरकार द्वारा गठित नई समिति की रिपोर्ट के आधार पर आगे की नीति तय की जाएगी। फिलहाल, राज्य सरकार ने संकेत दिया है कि किसी भी नई भाषा नीति को लागू करने से पहले सभी पक्षों की भावनाओं और सुझावों का सम्मान किया जाएगा।