नई दिल्ली, जुलाई 2025:
बुधवार को देशभर में बड़े पैमाने पर भारत बंद का आह्वान किया गया है, जिसमें करीब 25 करोड़ कर्मचारियों के शामिल होने की संभावना जताई जा रही है। इस हड़ताल का असर बैंकिंग, इंश्योरेंस, डाक सेवाओं, परिवहन और खनन जैसे प्रमुख क्षेत्रों पर पड़ सकता है।
हड़ताल का आयोजन देश की 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा किया गया है, जो केंद्र सरकार की श्रमिक-विरोधी, किसान-विरोधी और कॉरपोरेट-समर्थक नीतियों का विरोध कर रहे हैं। ट्रेड यूनियनों का दावा है कि यह प्रदर्शन केवल मज़दूर हित में नहीं, बल्कि राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए भी ज़रूरी है।
किन-किन सेवाओं पर होगा असर?
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बैंकिंग और डाक सेवाएं: हड़ताल के कारण बैंकों और पोस्टल नेटवर्क पर व्यापक असर की आशंका है।
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राज्य परिवहन और खनन: कोयला, इस्पात और अन्य खनिज क्षेत्रों में कामकाज प्रभावित हो सकता है।
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कारखाने और सरकारी संस्थान: कई सार्वजनिक उपक्रमों और फैक्ट्रियों में उत्पादन ठप रह सकता है।
हड़ताल की प्रमुख वजहें क्या हैं?
हड़ताल कर रही यूनियनों ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं:
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17 सूत्रीय मांगपत्र पिछले वर्ष श्रम मंत्रालय को सौंपा गया था, जिस पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
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वार्षिक श्रम सम्मेलन बीते 10 वर्षों से नहीं हो रहा।
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बेरोजगारी में वृद्धि, मजदूरी में गिरावट, और शिक्षा व स्वास्थ्य बजट में कटौती को भी विरोध का कारण बताया गया है।
ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की महासचिव अमरजीत कौर ने कहा कि, “यह हड़ताल सिर्फ शहरों में नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत में भी व्यापक असर डालेगी, क्योंकि किसान और ग्रामीण श्रमिक संगठन भी इसमें हिस्सा ले रहे हैं।”
युवाओं को नौकरी नहीं, रिटायर्ड को दोबारा नियुक्ति!
हड़ताल के पीछे एक बड़ा मुद्दा यह भी है कि सरकारी विभागों में युवाओं की भर्ती के बजाय रिटायर्ड कर्मचारियों को दोबारा नियुक्त किया जा रहा है, जबकि देश की 65% आबादी 35 साल से कम उम्र की है। यूनियनों का कहना है कि सरकार को नई भर्तियों पर ध्यान, मनरेगा में कार्यदिवस बढ़ाना और शहरी गरीबों के लिए कानून लागू करना चाहिए।
कौन-कौन समर्थन में?
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एनएमडीसी लिमिटेड, इस्पात उद्योग और अन्य खनन सेक्टर के यूनियन नेता हड़ताल में शामिल हो रहे हैं।
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संयुक्त किसान मोर्चा और कृषि श्रमिक संगठनों ने भी बंद को समर्थन दिया है और ग्रामीण स्तर पर बड़े पैमाने पर लामबंदी की घोषणा की है।
पिछली हड़तालों का रिकॉर्ड
इससे पहले 26 नवंबर 2020, 28-29 मार्च 2022, और 16 फरवरी 2024 को भी ट्रेड यूनियनों ने भारत बंद का आयोजन किया था, जिनमें व्यापक भागीदारी देखी गई थी।