भोपाल, 12 सितंबर 2025 – आंखों की रोशनी छीन लेने वाला रोग ग्लूकोमा अब मधुमेह रोगियों में तेजी से फैल रहा है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि डायबिटीज से पीड़ित हर 10 में से 10 में से लगभग 10 में से 1 व्यक्ति ग्लूकोमा का शिकार हो सकता है। इसके अलावा, सुबह एक साथ अधिक मात्रा में पानी पीना और लंबे समय तक शीर्षासन करने जैसी आदतें इस खतरे को और बढ़ा सकती हैं।
यह जानकारी गुरुवार को भोपाल में आयोजित ग्लूकोमा सोसाइटी ऑफ इंडिया की प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी गई। सम्मेलन का आयोजन शुक्रवार और शनिवार को होटल ताज में हो रहा है, जिसमें देश और विदेश के करीब 600 विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं।
साइलेंट रोग, देर से पहचान
ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ. विनीता रामनानी ने बताया कि ग्लूकोमा एक ‘साइलेंट डिज़ीज’ है, जो बिना लक्षण के बढ़ती रहती है। “हमारे पास आने वाले 75 प्रतिशत मरीजों में एक आंख की रोशनी पूरी तरह खत्म हो चुकी होती है। खासतौर पर मधुमेह रोगियों में यह जोखिम अधिक है। कई लोग सुबह एक बार में एक लीटर तक पानी पीते हैं या लंबे समय तक शीर्षासन करते हैं, जो इस रोग को तेज़ कर सकता है,” उन्होंने कहा।
समय पर जांच ही बचाव
ग्लूकोमा सोसाइटी ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट डॉ. सत्यन पार्थसारथी ने कहा कि “इस रोग से बचने का एक ही तरीका है – समय पर जांच। 40 वर्ष से ऊपर की उम्र, डायबिटीज, चश्मे का बार-बार नंबर बदलना या परिवार में रोग का इतिहास होने पर तुरंत जांच कराना चाहिए। यह जांच सरकारी और निजी दोनों अस्पतालों में उपलब्ध है।”
इलाज में आती हैं चुनौतियाँ
वर्किंग चेयरमैन डॉ. गजेंद्र चावला ने बताया कि इलाज के दौरान मरीज को दवाओं के साइड इफेक्ट्स जैसे आंखों में लालिमा, खुजली आदि के कारण विश्वास की कमी हो जाती है। “मरीज को लगता है कि इलाज गलत है और वह बीच में ही छोड़ देता है, जिससे रोग बढ़ता जाता है,” उन्होंने कहा।
अनजान और असुरक्षित मरीज
जॉइंट सेक्रेटरी डॉ. मधुलिका ने कहा कि “करीब 70 से 75 प्रतिशत मरीज ऐसे हैं जिन्हें अपनी बीमारी का पता नहीं है। अगर कोई रिस्क फैक्टर दिखे तो तुरंत जांच करानी चाहिए। 40 की उम्र के बाद हर साल आंखों की जांच कराना जरूरी है। ऑप्टिक नर्व क्षतिग्रस्त होने पर आंखों के सामने अंधेरा छाने लगता है और यह दोबारा नहीं बनती।”
मधुमेह से जुड़ी आंखों की समस्याएँ
विशेषज्ञों ने बताया कि डायबिटीज से पीड़ित हर 10 में से 6 लोगों को किसी न किसी प्रकार की आंखों की समस्या हो रही है। इसमें डायबिटिक रेटिनोपैथी, मैकुलर एडिमा, कैटरैक्ट और ग्लूकोमा शामिल हैं। रक्त वाहिकाओं से रिसाव के कारण कई मामलों में आंखों की रोशनी भी जा सकती है।
सम्मेलन में चर्चा के मुख्य बिंदु
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भविष्य में एआई आधारित मोबाइल ऐप के जरिए ग्लूकोमा की पहचान संभव होगी।
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ऑप्टिक नर्व को दोबारा बनाने के लिए स्टेम सेल तकनीक पर सिंगापुर में शोध चल रहा है।
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भारत के साथ अमेरिका और अफ्रीका में भी बड़ी संख्या में लोग प्रभावित हैं।
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एसटीपी लेजर तकनीक से ग्लूकोमा से जुड़ी सर्जरी को अधिक प्रभावी बनाया जा रहा है।
जीएमसी में मुफ्त जांच सुविधा
गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) में ग्लूकोमा स्पेशल क्लिनिक चल रहा है, जहां लिक्विड लेंस तकनीक से युक्त ‘विजुअल फील्ड एनालाइजर’ मशीन से जांच की जाती है। निजी केंद्र में इस जांच का खर्च लगभग 3,000 रुपये आता है, जबकि जीएमसी में यह सुविधा बिल्कुल मुफ्त है।