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मध्य प्रदेश

मां-बहन की सजा में गलती से फंसी पॉक्सो जज, हाईकोर्ट ने कहा – प्रशासनिक कार्रवाई हो

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भोपाल, 11 सितंबर 2025 – भोपाल के शाहजहांनाबाद में 5 साल की मासूम के साथ दुष्कर्म और हत्या के चर्चित मामले में पॉक्सो कोर्ट की जज कुमुदिनी पटेल के आदेश ने विवाद खड़ा कर दिया है। ट्रायल कोर्ट के फैसले में मुख्य आरोपी की माँ और बहन की सजा की अवधि आदेश के अलग-अलग हिस्सों में अलग दर्ज की गई – कहीं एक साल और कहीं दो साल। इसे न्यायिक लापरवाही मानते हुए हाई कोर्ट ने इसे गंभीर अनियमितता करार दिया और जज के खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।


हाई कोर्ट ने उठाई गंभीर आपत्ति

जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस अवनिंद्र कुमार सिंह की डिवीजन बेंच ने रजिस्ट्रार जनरल को आदेश दिया कि यह मामला मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जाए, ताकि प्रशासनिक स्तर पर जज के खिलाफ उचित कार्रवाई की जा सके। कोर्ट ने इसे ‘टाइपिंग की गलती’ मानने से इनकार करते हुए कहा कि यह न्यायिक प्रक्रिया में स्पष्ट चूक है।


फैसले में क्या गड़बड़ी हुई?

  • मुख्य आरोपी अतुल निहाले को ट्रायल कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई।

  • अतुल की माँ बसंती बाई और बहन चंचल बाई को साक्ष्य छुपाने के आरोप में एक-एक साल की सजा दी गई।

  • लेकिन आदेश की अंतिम तालिका में सजा दो-दो साल के रूप में लिखी गई।

  • यहाँ तक कि सजा का वारंट भी दो साल के लिए जारी हो गया।

  • आदेश की तालिका और पैरा में स्पष्ट विरोधाभास पाया गया।

हाई कोर्ट ने पाया कि आदेश के पैरा 145 में सजा की सही अवधि दर्ज थी, लेकिन अंतिम तालिका में गलती की गई। इसे साधारण त्रुटि न मानते हुए कोर्ट ने इसे गंभीर प्रक्रिया की चूक कहा।


पहले भी सामने आ चुके हैं ऐसे मामले

  • 2022, भोपाल पॉक्सो केस – सजा 10 साल लिखी, आदेश में 7 साल; हाई कोर्ट ने संशोधन कर चेतावनी दी।

  • 2019, इंदौर मर्डर केस – आजीवन कारावास की सजा में अवधि गलत; सुप्रीम कोर्ट ने केवल संशोधन किया।

  • 2024, ग्वालियर रेप केस – आरोपी का नाम गलत; हाई कोर्ट ने आदेश सुधार कर ट्रायल दोबारा नहीं चलवाया।


कानूनी प्रक्रिया और संभावित सुधार

क्या केस खत्म होगा?
सीआरपीसी की धारा 362 के तहत फैसला एक बार लिखे जाने के बाद बदलना कठिन होता है। धारा 465 के तहत स्पष्ट त्रुटियों को सुधारा जा सकता है। अधिकांश मामलों में केस बरकरार रहता है और केवल आदेश संशोधित होता है।

क्या फैसला दोबारा लिखा जाएगा?
हाँ, सीआरपीसी धारा 201 व सिविल प्रक्रिया संहिता ऑर्डर 20 रूल 3 के तहत आदेश क्लेरिफाइड या रेक्टीफाइड किया जा सकता है। हाई कोर्ट निर्देश दे सकता है और मूल तारीख बनी रहेगी।

क्या ट्रायल दोबारा चलेगी?
नहीं, मामला केवल आदेश की व्याख्या से जुड़ा है। सबूत और गवाहों पर पुनर्विचार नहीं होगा। अपील में सजा की बहस हो सकती है।

क्या जज पर कार्रवाई होगी?
जजेस प्रोटेक्शन एक्ट 1985 व सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के तहत दुर्व्यवहार साबित होने पर ही कार्रवाई होती है। लापरवाही सिद्ध होने पर चेतावनी या एडवर्स एंट्री दी जा सकती है। 90% मामलों में केवल चेतावनी दी जाती है।

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