मध्यप्रदेश में 27% अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण से जुड़े विवाद पर सुप्रीम कोर्ट 22 सितंबर को अंतिम सुनवाई करेगा। कोर्ट ने इस मामले को विशेष श्रेणी (टॉप ऑफ द बोर्ड) में रखते हुए पहले नंबर पर सूचीबद्ध किया है। इस सुनवाई में सरकारी भर्तियों में होल्ड किए गए 13% पदों को अनहोल्ड करने का भी फैसला आ सकता है।
मंगलवार को हुई सुनवाई में वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने MPPSC के चयनित अभ्यर्थियों की ओर से पक्ष रखा, जबकि ओबीसी महासभा के वकील वरुण ठाकुर ने बताया कि मामला अति महत्वपूर्ण मानते हुए जल्द निपटाने का निर्णय लिया गया है।
पृष्ठभूमि: हाईकोर्ट ने 14% सीमा तय की थी
4 मई 2022 को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश में OBC आरक्षण को 14% तक सीमित कर दिया था, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। याचिकाकर्ताओं ने छत्तीसगढ़ की तरह एमपी में भी राहत देने की मांग की है, जहां सुप्रीम कोर्ट ने 58% आरक्षण को अंतरिम रूप से मान्यता दी है।
सरकार भी 27% आरक्षण के पक्ष में
राज्य सरकार का कहना है कि 2019 में पारित कानून के अनुसार OBC को 27% आरक्षण मिलना चाहिए। लेकिन हाईकोर्ट की रोक के कारण भर्ती प्रक्रियाओं में 13% पद होल्ड किए जा रहे हैं। अब तक 35 से ज्यादा भर्तियां प्रभावित हुई हैं, जिनमें करीब 8 लाख अभ्यर्थी प्रभावित हैं और 3.2 लाख चयनित उम्मीदवार नियुक्ति का इंतजार कर रहे हैं।
विवाद का कारण
मप्र में आरक्षण की कुल सीमा 73% हो जाती है — ST को 20%, SC को 16%, OBC को 27% और EWS को 10%। हाईकोर्ट का मानना है कि यह सीमा संवैधानिक 50% सीमा से अधिक है, जबकि सरकार का दावा है कि राज्य की OBC आबादी 48% है, हालांकि इस पर ठोस आंकड़े नहीं पेश किए जा सके।
छत्तीसगढ़ का उदाहरण
छत्तीसगढ़ में OBC को 27%, ST को 32%, SC को 13% और EWS को 4% आरक्षण है, कुल 76%। वहां हाईकोर्ट ने अंतरिम रोक लगाई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने के बाद आरक्षण अंतिम फैसले तक जारी रहेगा।
अगला कदम
अगर सुप्रीम कोर्ट 22 सितंबर को हाईकोर्ट की रोक हटाता है, तो मध्यप्रदेश में OBC को 27% आरक्षण लागू हो जाएगा और 13% होल्ड पदों पर नियुक्तियां शुरू हो सकेंगी।