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मध्य प्रदेश

हमीदिया अस्पताल में 18 करोड़ की MRI-CT मशीनें तैयार, लेकिन मरीजों को नहीं मिलेगा फायदा – टेक्नीशियन नहीं, पुरानी मशीनें भी बंद

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भोपाल | 24 जून 2025
राजधानी भोपाल के हमीदिया अस्पताल में मरीजों को राहत देने के लिए 18 करोड़ रुपये की लागत से नई MRI और CT स्कैन मशीनें लगाई गई हैं। अस्पताल प्रशासन ने इन्हें 30 जून से ऑपरेशनल करने की तैयारी कर ली है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि टेक्नीशियन की अनुपलब्धता के कारण इन मशीनों से मरीजों की जांच संभव नहीं होगी।

नए भवन में लगी हैं हाई-टेक मशीनें, लेकिन चलाने वाला स्टाफ नहीं

गंभीर मरीजों की तुरंत जांच के लिए इन मशीनों को अस्पताल के ब्लॉक-1 में इमरजेंसी विभाग के पास स्थापित किया गया है। इसमें CT स्कैन मशीन की कीमत 6 करोड़ और MRI मशीन की कीमत 12 करोड़ रुपये है। हालांकि, इन मशीनों के संचालन के लिए न तो प्रशिक्षित टेक्नीशियन हैं और न ही इनके रखरखाव के लिए कोई एग्रीमेंट किया गया है।

पुरानी मशीनें भी 10 दिनों से बंद

इतना ही नहीं, अस्पताल की पुरानी MRI मशीन भी शॉर्ट सर्किट की वजह से बंद पड़ी है। तकनीकी कारणों से CT स्कैन यूनिट भी काम नहीं कर रही है। नतीजा ये कि गंभीर मरीजों को जांच के लिए निजी लैब्स की ओर रुख करना पड़ रहा है, जहां उन्हें हजारों रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं।


मरीजों की परेशानी – धूप-बारिश में भटकना, इलाज में देरी

  • मरीजों को हमीदिया से बाहर निजी लैब्स में जांच कराने जाना पड़ रहा है।

  • तेज धूप या बारिश में मरीजों को इधर-उधर भटकना पड़ता है।

  • आर्थिक रूप से कमजोर मरीज जांच टाल रहे हैं, जिससे इलाज में देरी हो रही है और स्वास्थ्य बिगड़ रहा है।


प्रशासन की सफाई – जल्द होगी टेक्नीशियन की नियुक्ति

गांधी मेडिकल कॉलेज के अधिकारियों ने दावा किया है कि टेक्नीशियन की नियुक्ति के लिए स्वास्थ्य विभाग को पत्र भेजा गया है और प्रक्रिया जारी है। जल्द ही नए स्टाफ की तैनाती कर दी जाएगी।


NMC के नियमों की अनदेखी

नेशनल मेडिकल काउंसिल (NMC) के नए दिशानिर्देशों के तहत मेडिकल कॉलेजों को मॉडर्न जांच सुविधाएं अस्पताल के स्वामित्व और संचालन में रखनी होती हैं। लेकिन हमीदिया में मशीनें तो खरीद ली गईं, पर उनके संचालन के लिए जरूरी बुनियादी इंतजाम नहीं किए गए।

मध्यप्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में करोड़ों की मशीनें धूल फांक रही हैं, जबकि मरीजों को जीवन रक्षक जांच के लिए परेशान होना पड़ रहा है। यह सिर्फ व्यवस्थागत लापरवाही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य अधिकारों की अनदेखी है।



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