राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गुरुवार को मथुरा-वृंदावन की आध्यात्मिक यात्रा के दौरान निधिवन स्थित बंशी चोर राधारानी मंदिर में एक अनोखा दृश्य देखकर सभी को चौंका दिया। मंदिर में श्रीकृष्ण की बजाय राधा रानी के हाथ में बंसी देखकर उन्होंने उत्सुकतावश प्रश्न किया—“अरे! ये बंशी तो कान्हा की होती है, यहां राधा जी के पास क्यों?”
सेवायत रोहित गोस्वामी ने राष्ट्रपति को मुस्कुराते हुए इस अनूठी परंपरा की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि एक समय श्रीकृष्ण बंसी बजाने में इतने तल्लीन रहते थे कि राधा जी उनसे रुष्ट हो गईं और उनकी बंसी छुपा ली। तभी से यह मंदिर बंशी चोर राधारानी के नाम से प्रसिद्ध है।
सात घंटे की आध्यात्मिक यात्रा
राष्ट्रपति मुर्मू अपने परिवार के साथ “प्रेसिडेंट एक्सप्रेस” से मथुरा-वृंदावन पहुंचीं। करीब सात घंटे की यात्रा के दौरान उन्होंने वृंदावन की कुंज गलियों, निधिवन की रहस्यमयी लताओं और पांच प्रमुख आध्यात्मिक स्थलों का भ्रमण किया।
सुबह के कार्यक्रम में राष्ट्रपति ने सबसे पहले बांकेबिहारी मंदिर में दर्शन-पूजन किया। इसके बाद निधिवन और सुदामा कुटी में उन्होंने विशेष पूजा-अर्चना की। सुदामा कुटी में उन्होंने नाभापीठाधीश्वर सुतीक्ष्ण दास की उपस्थिति में भजन स्थली की नई इमारत का लोकार्पण और पारिजात का पौधा रोपण किया। यहां उन्होंने गौ पूजन कर संत-महंतों के साथ आध्यात्मिक चर्चा भी की।
निधिवन के रहस्यों पर गहन जिज्ञासा
निधिवन के दिव्य वातावरण ने राष्ट्रपति को विशेष रूप से आकर्षित किया। उन्होंने सेवायतों से यहां की परंपराओं और मान्यताओं के बारे में विस्तार से जानकारी ली। गोस्वामी ने बताया कि निधिवन में लगभग 16,108 वृक्ष हैं, जिन्हें श्रीकृष्ण की पटरानियों का स्वरूप माना जाता है। मान्यता है कि आज भी रात में भगवान श्रीकृष्ण यहां सखियों के साथ रास रचाते हैं, इसलिए रात के बाद इस स्थान को आम लोगों के लिए बंद कर दिया जाता है।
श्रीकृष्ण जन्मस्थान और कुब्जा कृष्ण मंदिर के दर्शन
यात्रा के दूसरे चरण में राष्ट्रपति मुर्मू ने मथुरा स्थित कुब्जा कृष्ण मंदिर और श्रीकृष्ण जन्मस्थान का भी दर्शन किया। करीब 500 वर्ष पुराने कुब्जा कृष्ण मंदिर की जर्जर हालत देखकर उन्होंने इसके संरक्षण और सुधार के निर्देश दिए। जन्मस्थान पर उन्होंने 21 पुष्प बत्तियों से राधा-कृष्ण की आरती उतारी और विशेष पूजा में भाग लिया।
निजी रखी गई यात्रा
बांकेबिहारी मंदिर में दर्शन के बाद राष्ट्रपति के सामने विज़िटर बुक प्रस्तुत की गई, लेकिन उन्होंने इस यात्रा को पूरी तरह निजी बताते हुए इसमें कुछ भी लिखने से इनकार कर दिया।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की यह सात घंटे की आध्यात्मिक यात्रा न केवल आध्यात्मिक अनुभूति का प्रतीक रही, बल्कि ब्रजभूमि की अद्भुत परंपराओं और रहस्यों को उजागर करने वाली एक प्रेरणादायक घटना भी बन गई।